Monday, October 29, 2007

जब नायक नायिका मिले? या साथ सोए?

सवाल है अँगरेजी का यूसेज तेज़ी से बढ़ रहा है, लेकिन अँगरेजी शब्द देवनागरी में कैसे लिखें...
बदलती हिंदी में विदेशी, विशेषकर अँगरेजी, शब्दों का यूसेज या प्रचलन तेज़ी से बढ़ रहा है. उन्हें देवनागरी में सही लिखने में कई समस्याएँ आती है.
हम हर ध्वनि को वैसा ही बोलना चाहते हैं जैसा लिखते हैं, और जैसा बोलते हैं वैसा ही लिखना चाहते हैं. लेकिन रोमन लिपि में लिखना पढ़ना हमारी देवनागरी जैसा नहीं है. उस में ए से ज़ैड तक कुल 26 अक्षर हैं---और उन के ज़रिए सभी उच्चारण लिखने होते हैं. उदाहरण के लिए 'सी' (c) को 'स' बोलना है या 'क', यह दर्शाने के लिए उस के बाद कोई भिन्न स्वर या वर्ण लगाने की प्रथा बनी है. मोटे तौर पर 'सी' के बाद 'आई' (i) है या 'ई' (e) या 'ऐस' (s), या पहले 'सी' (c) है तो उच्चारण है 'स', बाद में 'ए' (a), 'यू' (u) है या 'ओ' (o) तो बोलते हैं 'क'. यही कारण है कि अँगरेजों को भी अंगरेजी हिज्जे रटने पड़ते हैं.
अँगरेजी में स्वरों की संख्या तो कुल पाँच हैं, लेकिन हमारे 10 स्वर उच्चारणों की जगह (अँ अः को नहीं गिना गया है, न ही ऋ ऋ़ लृ को) अँगरेजी में कम से कम 14 हैं. स्पष्ट है कि देवनागरी में पुराने स्वरो और मात्राओं से वे नहीं लिखे जा सकते. उन के लिए हमें अपने नियम बदलने पड़ेंगे, या नए अक्षर गढ़ने पड़ेंगे, जैसे आ और औ के बीच में ऑ. सवाल उठता है कि उन्हें कोश क्रम में कहाँ रखा जाए?
यूरोप की भाषाओं में लिपि तो वही रोमन है, लेकिन अक्षरों का उच्चारण अलग है. दूसरे देशों के यूरोपियनों को या तो अँगरेजी उच्चारण सीखना होता है या हिज्जे. अनेक देवनागरी उच्चारण कई यूरोपीय देशों में हैं ही नहीं. अँगरेज या फ़्राँसीसी 'खादी' को 'कादी' बोलते हैं. विदेशी नामों की बात तो दूर, रोमन में लिखे अपने भारतीय शब्द भी हम अपनी भाषाओं में सही नहीं लिख पाते. मेरे जन्म स्थान 'मेरठ Meerut' को मराठी में 'मीरुत' लिखा जाता है. बाँगला Saurav का सही उच्चारण है 'सौरभ' क्योंकि वहाँ 'व' का उच्चरण 'ब' या 'भ' है, लेकिन हिंदी में उसे 'सौरव' लिखने की प्रवृत्ति है. आम तौर पर हृषिकेश या हृतिक को हिंदी वाले ऋषिकेश या ऋतिक लिखते हैं. उड़िया 'शात्कड़ी Satkari' को हिंदी में लोग 'सत्कारी' बोलते लिखते हैं.
सेंटर सैंटर... टेस्ट टैस्ट... वेस्ट वैस्ट...
आज हिंदी में हर ओर विदेशी शब्दों और नामों की रेज़ है. अँगरेजी में कहें तो rage रेज है. देवनागरी में उन के हिज्जे कई बार भ्रामक हो जाते हैं. मैं कुछ वे शब्द ले रहा हूँ जिन में ए या ऐ उच्चारणों का घपला है. जैसे पीएमओ (प्रधान मंत्री कार्यालय)... होना चाहिए पीऐमओ. इस के सैकड़ों उदाहरण पता नहीं कब से हिंदी पत्रपत्रिकाओं में मिलते रहे हैं...
बात शुरू होती है रोमन लिपि के f, h, l, m, n, x अक्षरों के उच्चारणों की हमारी लिखावट से. हम लिखते हैं-- एफ़, एच, एल, एम, एन, एक्स... जो सही है और होना चाहिए वह है ऐफ़, ऐच, ऐल, ऐम, ऐन, ऐक्स. भयंकर परिणाम होता है...
अभी हाल में मेट और मैट का भयानक प्रयोग देखने में आया नई फ़िल्म जब वी मेट के नाम में. जैसे नाम लिखा गया है नाम लिखने वाला कहना चाहता था जब नायक नायिका मिले यानी जब वी मैट. लेकिन जो उस ने लिखा उस का मतलब होता है कि नायक और नायिका ने परस्पर शरीरिक संबंध कैसे संपन्न किया.
कुछ अन्य उदाहरण...
taste टेस्ट, test टेस्ट (होना चाहिए टैस्ट). अगर यह लिखते रहना है तो यह वाक्य कैसे लगेंगे? फ़ूड के टेस्ट का असली टेस्ट तो खाने में है. टेस्ट मेच को देखने का पूरा टेस्ट को स्टेडियम में ही आता है.
rate रेट, rat रेट. यदि rat (चूहा) है तो भी लिखते हैं रेट, (होना चाहिए रैट), rattle (झुनझुना) रेटल (चाहिए रैटल), mate मेट, met मेट (होना चाहिए मैट) की बात तो ऊपरहो ही चुकी है. metro को लिखते हैं मेट्रो (होना चाहिए मैट्रो), sale सेल, sell सेल (होना चाहिए सैल).
इसी तर्ज़ पर हाल ही मैं ने एक सुप्रसिद्ध हिंदी दैनिक में पढ़ा-- बेस्ट सेलर. हँसी भी आई और दया भी-- बैस्ट सैलर (बहुत बिकने वाली पुस्तक) का कैसा विद्रूप!
कुछ अन्य उदाहरण...bale को भी बेल, bell को भी बेल (होना चाहिए बैल), hale को हेल, hell को भी हेल (होना चाहिए हैल), health को हेल्थ (होना चाहिए हैल्थ), help को हेल्प (होना चाहिए हैल्प), इसी तर्ज़ पर help line हेल्प लाइन (होना चाहिए हैल्प लाइन), take को टेक, tech को भी टेक (होना चाहिए टैक), इसी तरह hitech हाइटेक (सही होता है हाईटैक).
कुछ अन्य सही उच्चारण जो होने चाहिए, पर होते नहीं... democracy डैमोक्रेसी, leather लैदर, metal मैटल, mettalic मैटलिक, centre सैंटर... cattle कैटल...

सवाल है कब तक?

8 comments:

CG said...

अर्थ के अनर्थ का बड़ा भीषण उदाहरण खोज लाये हैं आप. मुझे आशा है आप के ज्ञानवर्धक लेखों से कुछ मैं भी सीख पाउंगा.

अभय तिवारी said...

सही सवाल हैं..ध्यान रखूँगा...
और स्वागत है आप का अरविन्द जी..

Srijan Shilpi said...

आपका ब्लॉग देखकर मन प्रसन्न हो गया।
आपसे अब हमलोगों को शब्दों और उनके अर्थों की अलग-अलग भंगिमाओं को सीखने-समझने का अवसर मिलता रहेगा।

अफ़लातून said...

अरविन्दजी , खैरम कदम ।

Udan Tashtari said...

स्वागत है, भाई!! नियमित लेखन की शुभकामनायें.

ghughutibasuti said...

आपका स्वागत है । उच्चारण की समस्या बहुत विकट समस्या है । उससे भी विकट समस्या है यह कि देशी भाषाओं के उच्चारण गलत होना शान समझी जा सकती है किन्तु अंग्रेजी या किसी विदेशी भाषा का गलत उच्चारण हमारी फूहड़ता मानी जाती है। जबकि लगभग हर प्रान्त में उच्चारण थोड़ा अलग होता है।
मेरे विचार में हिन्दी में भी तेलगू की तरह ३ ए, ऐ, ऍ जैसे उच्चारण हो सकते हैं । मराठी व अन्य भाषाओं से भी सीखा जा सकता है ।
घुघूती बासूती

अनामदास said...

गुरू जी आप आ गए, अच्छा है,ज्ञानवर्धन होता रहेगा. सही लिखा है, हिंदी, अँगरेज़ी और क्षेत्रीय भाषाएँ मिलकर अजब चक्करघिन्नी बना देती हैं, समझ में नहीं आता किस राह पर चला जाए, हर बात के जितने नियम हैं, उतने अपवाद.

हरिराम said...

रोमन अर्थात् 'बेसिक लेटिन' लिपि में हिन्दी आदि भारतीय भाषाओं को पाठ को लिखने तथा उसे हू-ब-हू (सम्पूर्ण उच्चारण भेद तथा वर्तनी सहित) वापस देवनागरी तथा अन्य भारतीय लिपियों में परिवर्तित करने के लिए मानकों का निर्धारण करने हेतु सन् 2002 में 'मसौदे' प्रस्तुत किए गए थे। किन्तु मानकीकरण अभी तक अपेक्षित है। विशेष विवरण हेतु यहाँ तथा यहाँ देखें। यदि आप जैसे विद्वानों की ओर से कुछ जोर लगे तो यह कार्य जल्दी सम्पन्न हो सकता है।