अँगरेजी का यूसेज तेज़ी से बढ़ रहा है,
लेकिन सवाल है अँगरेजी शब्द देवनागरी में लिखें कैसे. . .
बदलती हिंदी में विदेशी, विशेषकर अँगरेजी, शब्दों का यूसेज या प्रचलन तेज़ी से बढ़ रहा है. उन्हें देवनागरी में सही लिखने में कई समस्याएँ आती है.
हम हर ध्वनि को वैसा ही बोलना चाहते हैं जैसा लिखते हैं, और जैसा बोलते हैं वैसा ही लिखना चाहते हैं. लेकिन रोमन लिपि में लिखना पढ़ना हमारी देवनागरी जैसा नहीं है. उस में ए से ज़ैड तक कुल 26 अक्षर हैं---और उन के ज़रिए सभी उच्चारण लिखने होते हैं. उदाहरण के लिए 'सी' (c) को 'स' बोलना है या 'क', यह दर्शाने के लिए उस के बाद कोई भिन्न स्वर या वर्ण लगाने की प्रथा बनी है. मोटे तौर पर 'सी' के बाद 'आई' (i) है या 'ई' (e) या 'ऐस' (s), या पहले 'सी' (c) है तो उच्चारण है 'स', बाद में 'ए' (a), 'यू' (u) है या 'ओ' (o) तो बोलते हैं 'क'. यही कारण है कि अँगरेजों को भी अंगरेजी हिज्जे रटने पड़ते हैं.
अँगरेजी में स्वरों की संख्या तो कुल पाँच हैं, लेकिन हमारे 10 स्वर उच्चारणों की जगह (अँ अः को नहीं गिना गया है, न ही ऋ ऋ़ लृ को) अँगरेजी में कम से कम 14 हैं. स्पष्ट है कि देवनागरी में पुराने स्वरो और मात्राओं से वे नहीं लिखे जा सकते. उन के लिए हमें अपने नियम बदलने पड़ेंगे, या नए अक्षर गढ़ने पड़ेंगे, जैसे आ और औ के बीच में ऑ. सवाल उठता है कि उन्हें कोश क्रम में कहाँ रखा जाए?
यूरोप की भाषाओं में लिपि तो वही रोमन है, लेकिन अक्षरों का उच्चारण अलग है. दूसरे देशों के यूरोपियनों को या तो अँगरेजी उच्चारण सीखना होता है या हिज्जे. अनेक देवनागरी उच्चारण कई यूरोपीय देशों में हैं ही नहीं. अँगरेज या फ़्राँसीसी 'खादी' को 'कादी' बोलते हैं.
विदेशी नामों की बात तो दूर, रोमन में लिखे अपने भारतीय शब्द भी हम अपनी भाषाओं में सही नहीं लिख पाते. मेरे जन्म स्थान 'मेरठ Meerut' को मराठी में 'मीरुत' लिखा जाता है. बाँगला Saurav का सही उच्चारण है 'सौरभ' क्योंकि वहाँ 'व' का उच्चरण 'ब' या 'भ' है, लेकिन हिंदी में उसे 'सौरव' लिखने की प्रवृत्ति है. आम तौर पर हृषिकेश या हृतिक को हिंदी वाले ऋषिकेश या ऋतिक लिखते हैं. उड़िया 'शात्कड़ी Satkari' को हिंदी में लोग 'सत्कारी' बोलते लिखते हैं.
बदलती हिंदी में विदेशी, विशेषकर अँगरेजी, शब्दों का यूसेज या प्रचलन तेज़ी से बढ़ रहा है. उन्हें देवनागरी में सही लिखने में कई समस्याएँ आती है.
हम हर ध्वनि को वैसा ही बोलना चाहते हैं जैसा लिखते हैं, और जैसा बोलते हैं वैसा ही लिखना चाहते हैं. लेकिन रोमन लिपि में लिखना पढ़ना हमारी देवनागरी जैसा नहीं है. उस में ए से ज़ैड तक कुल 26 अक्षर हैं---और उन के ज़रिए सभी उच्चारण लिखने होते हैं. उदाहरण के लिए 'सी' (c) को 'स' बोलना है या 'क', यह दर्शाने के लिए उस के बाद कोई भिन्न स्वर या वर्ण लगाने की प्रथा बनी है. मोटे तौर पर 'सी' के बाद 'आई' (i) है या 'ई' (e) या 'ऐस' (s), या पहले 'सी' (c) है तो उच्चारण है 'स', बाद में 'ए' (a), 'यू' (u) है या 'ओ' (o) तो बोलते हैं 'क'. यही कारण है कि अँगरेजों को भी अंगरेजी हिज्जे रटने पड़ते हैं.
अँगरेजी में स्वरों की संख्या तो कुल पाँच हैं, लेकिन हमारे 10 स्वर उच्चारणों की जगह (अँ अः को नहीं गिना गया है, न ही ऋ ऋ़ लृ को) अँगरेजी में कम से कम 14 हैं. स्पष्ट है कि देवनागरी में पुराने स्वरो और मात्राओं से वे नहीं लिखे जा सकते. उन के लिए हमें अपने नियम बदलने पड़ेंगे, या नए अक्षर गढ़ने पड़ेंगे, जैसे आ और औ के बीच में ऑ. सवाल उठता है कि उन्हें कोश क्रम में कहाँ रखा जाए?
यूरोप की भाषाओं में लिपि तो वही रोमन है, लेकिन अक्षरों का उच्चारण अलग है. दूसरे देशों के यूरोपियनों को या तो अँगरेजी उच्चारण सीखना होता है या हिज्जे. अनेक देवनागरी उच्चारण कई यूरोपीय देशों में हैं ही नहीं. अँगरेज या फ़्राँसीसी 'खादी' को 'कादी' बोलते हैं.
विदेशी नामों की बात तो दूर, रोमन में लिखे अपने भारतीय शब्द भी हम अपनी भाषाओं में सही नहीं लिख पाते. मेरे जन्म स्थान 'मेरठ Meerut' को मराठी में 'मीरुत' लिखा जाता है. बाँगला Saurav का सही उच्चारण है 'सौरभ' क्योंकि वहाँ 'व' का उच्चरण 'ब' या 'भ' है, लेकिन हिंदी में उसे 'सौरव' लिखने की प्रवृत्ति है. आम तौर पर हृषिकेश या हृतिक को हिंदी वाले ऋषिकेश या ऋतिक लिखते हैं. उड़िया 'शात्कड़ी Satkari' को हिंदी में लोग 'सत्कारी' बोलते लिखते हैं.
सेंटर सैंटर... टेस्ट टैस्ट... वेस्ट वैस्ट...
आज हिंदी में हर ओर विदेशी शब्दों और नामों की रेज़ है. अँगरेजी में कहें तो rage रेज है. देवनागरी में उन के हिज्जे कई बार भ्रामक हो जाते हैं. मैं कुछ वे शब्द ले रहा हूँ जिन में ए या ऐ उच्चारणों का घपला है. जैसे पीएमओ (प्रधान मंत्री कार्यालय)... होना चाहिए पीऐमओ. इस के सैकड़ों उदाहरण पता नहीं कब से हिंदी पत्रपत्रिकाओं में मिलते रहे हैं...
बात शुरू होती है रोमन लिपि के f, h, l, m, n, x अक्षरों के उच्चारणों की हमारी लिखावट से. हम लिखते हैं-- एफ़, एच, एल, एम, एन, एक्स... जो सही है और होना चाहिए वह है ऐफ़, ऐच, ऐल, ऐम, ऐन, ऐक्स. भयंकर परिणाम होता है...
अभी हाल में मेट और मैट का भयानक प्रयोग देखने में आया नई फ़िल्म जब वी मेट के नाम में. हिंदी में नाम लिखने वाला कहना चाहता था जब नायक नायिका मिले यानी जब वी मैट. लेकिन जो उस ने लिखा उस का मतलब होता है जब नायक और नायिका ने परस्पर शरीरिक संबंध संपन्न किया.
कुछ अन्य उदाहरण...
taste टेस्ट, test टेस्ट (होना चाहिए टैस्ट). अगर यह लिखते रहना है तो यह वाक्य कैसे लगेंगे? फ़ूड के टेस्ट का असली टेस्ट तो खाने में है. टेस्ट मेच को देखने का पूरा टेस्ट को स्टेडियम में ही आता है.
rate रेट, rat रेट. यदि rat (चूहा) है तो भी लिखते हैं रेट, (होना चाहिए रैट), rattle (झुनझुना) रेटल (चाहिए रैटल), mate मेट, met मेट (होना चाहिए मैट) की बात तो ऊपरहो ही चुकी है. metro को लिखते हैं मेट्रो (होना चाहिए मैट्रो), sale सेल, sell सेल (होना चाहिए सैल).
इसी तर्ज़ पर हाल ही मैं ने एक सुप्रसिद्ध हिंदी दैनिक में पढ़ा-- बेस्ट सेलर. हँसी भी आई और दया भी-- बैस्ट सैलर (बहुत बिकने वाली पुस्तक) का कैसा विद्रूप!
लीजिए और भी उदाहरण...
bale को भी बेल, bell को भी बेल (होना चाहिए बैल), hale को हेल, hell को भी हेल (होना चाहिए हैल), health को हेल्थ (होना चाहिए हैल्थ), help को हेल्प (होना चाहिए हैल्प), इसी तर्ज़ पर help line हेल्प लाइन (होना चाहिए हैल्प लाइन), take को टेक, tech को भी टेक (होना चाहिए टैक), इसी तरह hitech हाइटेक (सही होता है हाईटैक).
कुछ अन्य सही उच्चारण जो होने चाहिए, पर होते नहीं... democracy डैमोक्रेसी, leather लैदर, metal मैटल, mettalic मैटलिक, centre सैंटर... cattle कैटल...
सवाल है कब तक?
5 comments:
udiya ke badle odia bolna sahi hai.
धन्यवाद.
तो फिर उड़ीसा का उच्चारण होगा ओड़िसा?
अन्य पठकों से अनुरोध है कि ऐसी ही जानकारी देते रहें।
अरविंद
अरविंद जी,
आपका ब्लॉग देखकर बड़ी ख़ुशी हुई. उम्मीद है आप लगातार लिखते रहेंगे.
इस प्रविष्टि के बारे में कुछ पूछना चाहता हूँ. हिंदी में छोटे ए (या ओ) की ध्वनि के लिए कोई अक्षर नहीं है. यूँ लिप्यंतरण के उद्देश्य से ऎ और ऒ लिपि में लिए गए हैं (और ये यूनिकोड कूट में भी शामिल हैं) पर देवनागरी में आम तौर पर इस्तेमाल होता. इसलिए ह्रस्व ऎ या ऒ की ध्वनियों के लिए भी आम तौर पर ए या ओ की मात्राओं से ही काम चलाया जाता है. जैसे एक्का, दोबारा, मोहब्बत आदि. एक्का को हम ऐक्का नहीं लिखते. फिर मेट (met), सेट (set), या सेंटर (center) ग़लत लिप्यंतरण क्यों है? बल्कि क्या इन्हें मैट, सैट, या सैंटर लिखना ग़लत नहीं होगा क्योंकि अंग्रेज़ी में इनका उच्चारण ऐ की ध्वनि वाला तो कतई नहीं है.
विनय
मेरी टिप्पणी में भूल सुधार:
यूँ लिप्यंतरण के उद्देश्य से ऎ और ऒ लिपि में लिए गए हैं (और ये यूनिकोड कूट में भी शामिल हैं) पर देवनागरी में आम तौर पर इस्तेमाल होता.
यूँ लिप्यंतरण के उद्देश्य से ऎ और ऒ लिपि में लिए गए हैं (और ये यूनिकोड कूट में भी शामिल हैं) पर देवनागरी में आम तौर पर इस्तेमाल नहीं होते.
विनय की शंका पर मै ने जो पत्र लिखा है, वह और सब भी पढ़ सकें, इस लिए नीचे है--
विनय जी
इस विषय पर सामूहिक चर्चा होनी चाहिए। चर्चा आरंभ करने के लिए मैं शीघ्र ही लंबा लेख लिखने वाला हूँ। वह अपने ब्लाग पर मैं पब्लिश करूँगा। ब्लाग की दुनिया में मैं नया हूँ--निपट अनाड़ी... आप जैसे लोगों से सीख कर ही आगे बढ़ूँगा। मुझे तो अभी लेआउट बनाना, चित्रडालना भी नहीं आता। और यह भी नहीं जानता की प्रमुख साइटों पर अपना ब्लाग रजिस्टर कैसे करूँ। क्या आप उसे हर जगह रजिस्टर करा सकते हैं? ब्लाग का नाम है--Arvind's Koshnama अरविंद कोशनामा। आप खोजेंगे तो मिल जाएगा।
वर्तनी पर संक्षेप में इतना ही--
हिंदी का उच्चारण पिछले दशकों में, कहेंतो सदी में, तेजी से बदला है. वह संस्कृत के प्रभाव से भिन्न होता जा रहा है. संस्कृत में ए ऐ ओ औ संयुक्त ध्वनियाए थीं. वहाँ दो स्वतंत्र स्वरों को लिखने कि आज़ादी नहीं थी। अ और इ हों तो ए ही लिखना होता था, अ और ई हों तो ऐ। अब हम लोग ए और ऐ को स्वतंत्र स्वर मानने लगे हैं जो अँगरेजी के मेट और मैट वाले ही हैं। यही बात ओ और औ के बारे में है.
मराठी और हिंदी में इन अँगरेजी स्वरों के लिए नए चिह्न तो बना लिए गए हैं, लेकिन कोश में उन का क्रम क्या होगा--यह कहीं तय नहीं है. मैं इस समस्या को लेखन और कोश की समस्या के तौर पर मिला कर देखता हूँ। नए स्वरों को लिखना और टाइप करना तो एक नई समस्या है ही (हम पाट्य़ कर्म में इन के बारे में नहीं सिखाते. पाठ्य क्रम में हम क़ ख़ आदि के बारे में, ड़ और ढ़ के बारे में नहीं बताते. वहाँ तो हम बारह खड़ी सिखाते हैं अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ए ऐ ओ औ अं अः. लेकिन कोशक्रम में होता है अं अः अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ... इसी तरह क्ष त्र ज्ञ सब से अंत में बताए जाते हैं. बच्चे समझते हैं कि ये तीन अक्षर ह के भी बाद में आते होंगे. जब बच्चा कोश देखता है तो समझ नहीं पाता कि मैं कौन सा शब्द कहाँ खोजूँ।
अब हम अइ अई अउ अऊ लिख सकते हैं, लिखते हैं. सुअवसर शब्द संस्कृत में हो ही नहीं सकता. वहाँ होता स्ववसर.
ये सब देखते हुए, यह बात स्वीकार करते हुए कि सारे संसार तो क्या, सारे भारत की सभी ध्वनियाँ हमारी देवनागरी में नहीं समोई जा सकतीं, हमें प्रचलित स्वरों के ज़रिए निकटतम राह अपनानी चाहिए. आप स्वयं देखिए--आज हिंदी में क्या हो रहा है? मेट मैट टेस्ट टैस्ट मेच मैच आदि के हिज्जे एक से ही लिखे जा रहे हैं. देखिए-- टेस्ट मेच देखने का असली टेस्ट तो मैदान में ही आता है... जब वी मेट तो आप देख ही चुके हैं... शेष कभी फिर...
अरविंद
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