भाई विनय ने जो प्रश्न मुझ से किए, उन के उत्तर नीचे हैं
इस विषय पर सामूहिक चर्चा होनी चाहिए. चर्चा आरंभ करने के लिए मैं शीघ्र ही लंबा लेख लिखने वाला हूँ. वह अपने ब्लाग पर मैं पब्लिश करूँगा.
हिंदी का उच्चारण पिछले दशकों में, कहें तो पिछली सदी में, तेजी से बदला है. वह संस्कृत के प्रभाव से भिन्न होता जा रहा है. संस्कृत में ए ऐ ओ औ संयुक्त ध्वनियाँ थीं। वहाँ दो स्वतंत्र स्वरों को लिखने कि आज़ादी नहीं थी। अ और इ हों तो ए ही लिखना होता था, अ और ई हों तो ऐ। अब हम लोग ए और ऐ को स्वतंत्र स्वर मानने लगे हैं जो अँगरेजी के मेट और मैट वाले ही हैं। यही बात ओ और औ के बारे में है. मराठी और हिंदी में इन अँगरेजी स्वरों के लिए नए चिह्न तो बना लिए गए हैं, लेकिन कोश में उन का क्रम क्या होगा--यह कहीं तय नहीं है.
मैं इस समस्या को लेखन और कोश की समस्या के तौर पर मिला कर देखता हूँ। नए स्वरों को लिखना और टाइप करना तो एक नई समस्या है ही (हम पाट्य़ कर्म में इन के बारे में नहीं सिखाते. पाठ्य क्रम में हम क़ ख़ आदि के बारे में, ड़ और ढ़ के बारे में नहीं बताते. वहाँ तो हम बारह खड़ी सिखाते हैं अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ए ऐ ओ औ अं अः. लेकिन कोशक्रम में होता है अं अः अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ... इसी तरह क्ष त्र ज्ञ सब से अंत में बताए जाते हैं. बच्चे समझते हैं कि ये तीन अक्षर ह के भी बाद में आते होंगे. जब बच्चा कोश देखता है तो समझ नहीं पाता कि मैं कौन सा शब्द कहाँ खोजूँ। अब हम अइ अई अउ अऊ लिख सकते हैं, लिखते हैं. सुअवसर शब्द संस्कृत में हो ही नहीं सकता. वहाँ होता स्ववसर. ये सब देखते हुए, यह बात स्वीकार करते हुए कि सारे संसार तो क्या, सारे भारत की सभी ध्वनियाँ हमारी देवनागरी में नहीं समोई जा सकतीं, हमें प्रचलित स्वरों के ज़रिए निकटतम राह अपनानी चाहिए. आप स्वयं देखिए--आज हिंदी में क्या हो रहा है? मेट मैट टेस्ट टैस्ट मेच मैच आदि के हिज्जे एक से ही लिखे जा रहे हैं. देखिए-- टेस्ट मेच देखने का असली टेस्ट तो मैदान में ही आता है... जब वी मेट तो आप देख ही चुके हैं... शेष कभी फिर...
ब्लाग की दुनिया में मैं नया हूँ--निपट अनाड़ी... आप जैसे लोगों से सीख कर ही आगे बढ़ूँगा। मुझे तो अभी लेआउट बनाना, चित्र डालना भी नहीं आता। और यह भी नहीं जानता की प्रमुख साइटों पर अपना ब्लाग रजिस्टर कैसे करूँ। क्या आप उसे हर जगह रजिस्टर करा सकते हैं? ब्लाग का नाम है--Arvind's Koshnama अरविंद कोशनामा। आप खोजेंगे तो मिल जाएगा।
एक बार फिर सभी से अनुरोध है कि इस चर्चा को इस ब्लाग पर आगे बढ़ाएँ और सभी मित्रों को इस चर्चा के बारे में बताएँ, और यह ब्लाग देखने को प्रेरित करें।
शीघ्र ही मैं कुछ अन्य गंभीर विषय भी उठाने वाला हूँ...
अरविंद
Wednesday, October 31, 2007
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9 comments:
अरविंद जी, आपके चिट्ठे को नारद, ब्लॉगवाणी और चिट्ठाजगत् में पंजीकरण हेतु लिख दिया है. संभवतः एकाध दिन में यह कार्य पूरा हो जाएगा.
अरविन्द साहब, आपका ब्लाग ब्लागवाणी पर शनिवार की रात से (जब आपने पहली पोस्ट लिखी) ही उपस्थित है.
हम आपको हिन्दी ब्लागर्स के बीच पाकर अपने आपको गर्वित महसूस कर रहे हैं.
आज श्री रवि जी के सौजन्य से आपका चित्र भी उपलब्ध होगया.
धन्यवाद...
आप लोगों के सहारे ही आगे बढ़ पाऊँगा...
हर समय सलाह देते रहें.
अरविंद
अरविन्दजी, आपका स्वागत है तथा आपको बलाूगजगत में पाकर हम हर्षित च गर्वित हैं।
कोशक्रम के संबंध में अं व अँ के क्रम के औचित्य पर भी प्रकाश डालें। अनुस्वार व अनुनासिक के बीच आपसी संबंध व कोश में उनके क्रम का आधर क्या है।
पाठ्यक्रम में अब कोश परिचय (क्रम सहित) है मसलन बीए प्रथम वर्ष में (दिल्ली विश्वविद्यालय में)
आपके लेख का इंतज़ार रहेगा.
आपने वर्णमाला अनुक्रम में मानकीकरण की बात उठाई है जो धीरे-धीरे बहुत ज़रूरी होती जाएगी. इस बारे में जितनी जल्दी कुछ हो अच्छा है.
ड़, ढ़ के अभी तक बच्चों को सिखाई जाने वाली वर्णमाला में शामिल होने की क्या वजह हो सकती है? ऐसा होना तो मुश्किल लगता है कि किसी ने इसके बारे में सोचा ही न हो. कहीं यह तर्क तो नहीं रहा होगा कि इन अक्षरों से कोई भी शब्द शुरू नहीं होता? मैं इस तर्क के पक्ष या विपक्ष में नहीं हूँ. बस जानना चाहता हूँ कि क्या वजह हो सकती है. इसी तरह क्ष त्र ज्ञ वाली बात. जब ये संयुक्ताक्षर वर्णमाला में सिखाए जाते हैं तो बाकी (जैसे श्र) क्यों नहीं.
उम्मीद है आप अपने लेख में इन मुद्दों पर रौशनी डालेंगे.
बस, ह वैसा ही करते रहते हैं जैसा पुरखे करते आ रहे थे. हम लोग ज्दी ही अपने को समय के साथ नहीं बदलते. पश्चिम वाले अपने आप को अप टु डेट रखते हैं--तभी वहाँ से नए विचार नए अन्वेषण आते रहते हैं... हम ने तो क्लिप तक नहीं बनाया, स्टेपल भी हमने नहीं बनाया... बाल पैन भी नहीं... वही मोरपंख हमारे यहाँ लेखन का प्रतीक है...
अं अः वाले कोशक्रम का उपयोग आज से नहीं, 19वी सदी से हो रहा है... इस का कारण क्या है नैं नहीं जानता, जो जानता हूँ कि हमारी शिक्षा संस्थाएँ इस के बारे में किसी को बताती नहीं हैं..
अरविंद
आपका ब्लाग् शुरू होना हम् लोगों के लिये बहुत् खुशी की बात् है। आपका समान्तर् कोश पर् किया गया काम हिंदी भाषा की उपलब्धि है। :)
मुझे तो पता ही नहीं था कि आपका ब्लॉग भी है , यूं ही सामानंतर कोश के बारे में सर्च करते हुए इस तक पहुंच गया .
अब लगातार आपको पढता रहूंगा .
अरविंद जी,
अभी अभी आपके ब्लॉग के दर्शन हुए. हिंदी भाषा व शब्द को लेकर इतने महत्वपूर्ण कार्य ब्लॉग पर आप कर रहे है, यह निसंदेह काबिलेतारीफ है.यह नइ पीढी के लिए प्रेरणादायक है.
कौशलेंद्र मिश्र
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